कैसे कहूँ की मैं कैसा हूँ..
ना मै फ़रिश्ता हूँ,ना फ़रिश्ते जैसा हूँ..
जो बात करता हूँ वो निभाता हूँ,
इरादों मे मै चट्टानों जैसा हूँ..
दुःखों मे हँसने का हुनर जानता हूँ,
गैरों को भी मैं अपना मानता हूँ,
एक बार जो थाम लूँ हाथ किसी का,
उमर भर साथ निभाने का हौसला रखता हूँ..
मै जो भी हूँ,बस मेरे जैसा हूँ..
ख्वाहिस नही मुझे दुनिया जैसी बनने की..
गर्व है मुझे की,मै मेरे जैसा हूँ....